Saturday 4 February 2017

बड़े बुजुर्ग
जब घर के बड़े बुज़ुर्ग चले जाते है
घर के दरवाजे रोशनदान हो जाते हैं!
ड्योढियों के बँटवारे हो जाते है
आँगन फिर वीरान हो जाते हैं!
रिश्तों में चुन जाती है दीवारें
खुशियों के कटोरों में छेद हो जाते हैं!
उस घर के इतिहास लिखे कैलेंडर
फिर सड़कों पर बिखर जाते हैं!
देहरी पर पड़ी बुज़ुर्ग की चप्पल से
हमेशा डरे सहमे से रहे, मवाली!
उसी गली के शेर हो जाते हैं!
फिर वो
रोशनदान बने हुए दरवाजे
कई जोड़ी आँखें बन जाते हैं!
स्वार्थी औलाद के नाम
न भेजो हाशिये पर
माँ बाप तुम्हारी छत है
बनाओ न इनमे झरोखे 
यह छत ही आसमां है
तुम्हारे पंख, इन्हीं की देन
न करों इन्हे बेसहारा
 आईना हैं यह तुम्हारा
प्यार में स्वार्थ न घोलो
सुबकुछ तो है तुम्हारा
भूल गए तुम, आखिरी सीढ़ी
दहलीज़ की, तुम्हें भी तो छुएगी
फिर भी माँ के मुख से
बददुआ तो न निकलेगी
इनकी आंसुओं की आहों का सफर
तुम्हारी जिंदगी को पलटने में
 उतना ही समय लेगा
जितना कि-
''दिन'' को ''शाम'' में बदलने में-
यानि
'''''एक पल'''''
रह जाएंगे पास सिर्फ सन्नाटे
सन्नाटों के डर से बचो, चेतो
अपने आइनों को प्यार करो
कोख का सम्मान करो
एक बार रामायण पढ़ लो
पढ़ते-पढ़ते राम-सीता को जी लो
फिर देखो, पूरा का पूरा आसमां
होगा सिर्फ तुम्हारा
माँ बाप तो छत है
न भेजो हाशिये पर
न करों इन्हे बेसहारा
 आईना हैं यह तुम्हारा